Share0 Bookmarks 43810 Reads1 Likes
तीसरे पहर के घण्टे
कितने बेसुध और बेजान!
जान पड़ते हैं कुछ गतिहीन से।
धूप तब सूरज की भंगिमा बन
दिन चमकाने का काम करती है,
सीधी-साधी सी दिखने वाली,
तपाती खुद है
और सूरज का नाम करती है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments