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तीसरे पहर के घण्टे
कितने बेसुध और बेजान!
जान पड़ते हैं कुछ गतिहीन से।
धूप तब सूरज की भंगिमा बन
दिन चमकाने का काम करती है,
सीधी-साधी सी दिखने वाली,
तपाती खुद है
और सूरज का नाम करती है।
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