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ओ कोमल कान्ति वाली रतिरूपा,
ओ विशालाक्षा सुन्दरी नयनाभिराम!
वामना सी, कामना सी प्रतीत होती,
ओ वृत्तों के वर्ग का जगाती वाम
कलियों से काजल लगा यों नीर बहा,
सतत्-सतत् सुन्दर-सुन्दर कहती हो।
ओष्ठों पर सरस बहाने वाली तुम,
ओ सुन्दरी कहाँ रहती हो?
ओ दिनकर के दिन की आभा सी,
ओ पूनम के चाँद की चंद्रिका।
किस हेतु तुम बहा करती हो,
किसकी मिटाती तुम मरीचिका?
ओ बारिस की बूँदों में बीजता भरने वाली,
छम छम नुपुर बाँधकर नाचती पावस रानी।
किस हेतु तुम जल्दी-जल्दी जाती,
किस हेतु बहाती अपना ये पानी।
ओ विशालाक्षा सुन्दरी नयनाभिराम!
वामना सी, कामना सी प्रतीत होती,
ओ वृत्तों के वर्ग का जगाती वाम
कलियों से काजल लगा यों नीर बहा,
सतत्-सतत् सुन्दर-सुन्दर कहती हो।
ओष्ठों पर सरस बहाने वाली तुम,
ओ सुन्दरी कहाँ रहती हो?
ओ दिनकर के दिन की आभा सी,
ओ पूनम के चाँद की चंद्रिका।
किस हेतु तुम बहा करती हो,
किसकी मिटाती तुम मरीचिका?
ओ बारिस की बूँदों में बीजता भरने वाली,
छम छम नुपुर बाँधकर नाचती पावस रानी।
किस हेतु तुम जल्दी-जल्दी जाती,
किस हेतु बहाती अपना ये पानी।
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