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छिटका पहाड़

Pandit KeshavPandit Keshav September 2, 2022
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मेरे गाँव में, किनारे पर,
बसा है आँचल का एक टुकड़ा
आँचल, जिसे धरती ओढे़  है!

 हरे रंग का सोना 
और बहती हुई 'चमकती चाँदी',
कुछ टूटे खण्डहरों को 
समेटे हुए अपने में।

स्थिर, शान्त खड़ा है वो;
अस्थिरता दिखती उसकी, 
झञ्झाओं के झौंकों में।
अशान्ति दिखती उसकी,
मोरों की कूकों में।

और फिर वो उड़ता भी 
पंछियों में पर बनकर,
कुलाचें वो भरता
हिरणों में पैर बनकर।

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