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हनुमान
नटखट चंचल, अंजनी नंदन,
निकले धरती की सैर पर !
चलते चलते भूख लग आयी,
खाने लगे कंद मूल जड़ !फिर भी तृष्णा नहीं मिटी,
दिखा नभ में चमकता बड़ा सा फल !लगाई छलांग उड़ने लगे मारुती,
खा गए गर्म सूर्य को अम्बर से तोड़ कर !इंद्र देव क्रोधित हो आये,
तोड़ दिया जबड़ा मार वज्र मुँह से सूर्य बाहर निकल आये, प्रसन्न हो किया वायु-पुत्र का नामकरण !
तब मारुति हनुमान कहलाये, उनके गुरु बने स्वयं भास्कर !
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