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पिता को खो देना शायद जीवन का सबसे बड़ा दुःख होता है। आज मैं उसी पीड़ा से गुज़र रही हूँ। पिता को जाने के बाद अग्नि देना और उसमे समाहित करना बहुत ही कठिन क्षण था। अपनी वेदना कुछ पंक्तियों में लिखती हूँ।
एक बेटी का पिता
हे पिता, मेरे जनक
मैं तुम्हारी जानकी हूँ ॥
सत्कर्म तुमने किए आजीवन
अब तुम्हें सदगति दिलाती हूँ ॥
कन्या वर्ण होते हुए भी
राम का कर्म निभा
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