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राजीव :- साक्षी कहा खोई हुई हो... और ये तुम्हारे हाथ में क्या हैं..!
साक्षी :-ये... याद हैं राजीव मैने तुम्हें अभय के बारे में बताया था..।
राजीव :- हां... याद हैं..।
साक्षी :- ये उसी की एक निशानी हैं..।
राजीव :- निशानी...?
साक्षी :- हां... प्यार की निशानी..। ये लोकेट और एक लेटर उसने मुझे दिया था..।
राजीव :- ओहह...। हां तुमने बताया था मुझे...।पर आज अचानक ऐसे....और....वो लेटर कहाँ हैं..!
साक्षी मुस्कुराते हुए पास में मेज पर रखें लेटर को दिखाते हुए :- तुम्हें पता हैं राजीव इस लेटर में उसने क्या लिखा था..।
राजीव:- तुमने कभी बताया ही नहीं.... क्योंकि मैने कभी पुछा भी नहीं...।
साक्षी :- सिर्फ दो लाइन लिखी है..।
डियर साक्षी .....मुझे नहीं पता मैं तुमसे कब से और कितना प्यार करता हूँ बस इतना जानता हूँ.. यू कंपलीट मी..।
राजीव मुस्कुराते हुए :- वाह... क्या बात हैं.. दो लाइन में ही सब कुछ बोल दिया..।
साक्षी :- पता हैं राजीव.. इतने साल हम साथ पढ़े.. साथ खेले.. साथ बढ़े हुए... पर मुझे कभी भी नहीं लगा की वो मुझे इतना प्यार करता हैं..। ना ही कभी उसने जताया और ना ही कभी मुझे महसूस हुआ..।
राजीव :- तुम बहुत मिस कर रहीं हो ना उसको..!
साक्षी :- हां राजीव... । जानते हो क्यूँ..!
राजीव :- जानता हूँ साक्षी..। पिछले साल आज ही के दिन उसकी मौत की खबर तुम्हें मिलीं थीं..।
साक्षी राजीव के करीब आकर उसकों गले से लगाते हुए बोलीं :- सच में राजीव... मैं ये कभी नहीं चाहतीं थी की वो इस तरह मुझे अकेला छोड़ दे..। लेकिन किस्मत के आगे किसकी चलीं हैं..।
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