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वो चाय की चुस्की,

दोस्तों का मेला,

वो भी क्या वक्त था जब कोई नहीं था अकेला।


खाली थे हमारे जेब,

पर चाय वाले का दिल बड़ा था,

एक बड़े से रजिस्टर में सब पे उधार चढ़ा था।


पाता नहीं कब आते थे और कब जाते थे,

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