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बज़्म-ए-रिंदाँ में बैठे तो मिला सुकून,
वर्ना तेरी रुसवाइयों के मारे हुए हम भी थे।
तुम जो भूले तुमसे सिकवा भी न किया हमने,
वर्ना वीरानियों में चंद यादों के सहारे हम भी थे।
रिंद मिले तो समझा हम ओढ़े फिर रहें हैं कफन,
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