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उनके रुखसार पे भी आ गई थी कुछ बूंदें,
पुराने संदूक में छुपा दिल हम कहां से ढूंढें।
तर्क-ए-त'अल्लुक़ात का लिखा जो मैंने अफसाना था,
सर-ए-बाज़ार में थे तन्हा दोनो ऐसा भी एक ज़माना था।
जा रही होगी जां उनकी भी, शर्मोशार कुछ हम भी थे।
लब ना कह रहे थे पर जिनपे था जां निसार तुम ही थे।
हालात से मजबूर ऐसा मैं दीवाना था,
सर ए बाजार में थे तन्हा दोनो ऐसा भी एक ज़माना था।
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