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ज़माने की नजरों से दूर जा के मिलता है,
ऐ आसमां मुझमें तेरा अक्स दिखता है।
बेवजह बादलों के पर्दों में जा छुपता है,
वो बादल भी बरस के मुझ में ही मिलता है।
खुस है तू जिस चांद सूरज की सोहबत में,
कर यकीन वो भी मेरे आगोश में ही ढलता है।
निकलते हैं मेरे अरमान जो लहर पे लहर उठती है,
ना छू सकूं जो तुझे ये खला मुझको निगलता है।
काश देख सकते तुम दर्द तुमसे बिछड़ने का,
समंदर हूं मुझमें आंसू कहां दिखता है।
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