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लिखता हूं मैं क्यों,
जान के करोगे क्या ?
जो तुम्हे है पसंद शायद एक दिन लिखूंगा उसके भी खिलाफ,
तुम पढ़ोगे क्या ?
मौसम-ए-सब्ज़ में कई कलियां खिल जाती हैं,
सर्द मौसम में भी साथ सफर करोगे क्या ?
होगा जब जब जुल्म किसी और पे हुकुमरानों का,
आराम का लिहाफ छोड़ खिलाफत में आगे बढ़ोगे क्या ?
जो तुम्हे है पसंद शायद एक दिन लिखूंगा उसके भी खिलाफ,
तुम पढ़ोगे क्या ?
लोग कहते हैं
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