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उड़ते थे जो आसमान में,
आज यहां आ कर थम बैठे।
खिला है जो एक फूल चमन में,
लिए कितने आरजू हम सनम बैठे ।
रास्ता भी वही मंजिल भी वही,
ये हम लगा कौन सी लगन बैठे।
अब बचा ही क्या और समझने को,
जब जला इश्क की अगन बैठे।
चांद हैं वो, दीवाने उनके है बहुत,
ना जाने हम किस भरम बैठे।
सोचा लौट जाऊं खुद के आसमान में,
हमको वो दे अपनी कसम बैठे।
#कविता
#Poetry
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