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छुप सकते थे हम भी बंद दरवाजों के पीछे,
पर फिर तुम्हारा खयाल कौन रखता।
ऐसे भी है समाज में गंदगी बहुत,
सड़कों पे भी फैले बदबू दिल में ये मलाल कौन रखता।
अस्पताल जो पट गए मरीजों से,
हमने भी कमर कस ली,
हुनर जो बक्शा है खुदा ने,
न किया इस्तेमाल ये सवाल जिंदगी भर कौन रखता।
छुप सकते थे हम भी बंद दरवाजों में,
फिर तुम्हारा खयाल कौन रखता।
जो तुम मुसीबत में थे,
पैसों का इंतजाम तो करना था,
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