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हस्त बिखेरते थे मुद्रा,
मोती बिखर रहे हों जैसे।
आंखे बयान करती थी कहानियां,
राधा खुद निखर रहीं हों जैसे।
पग के घुंघरू बजते थे,
साज खुद संवर रहें हो जैसे।
मानस प
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