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हस्त बिखेरते थे मुद्रा,
मोती बिखर रहे हों जैसे।
आंखे बयान करती थी कहानियां,
राधा खुद निखर रहीं हों जैसे।
पग के घुंघरू बजते थे,
साज खुद संवर रहें हो जैसे।
मानस पटल पे स्मृति है तुम्हारी,
श्याम से जाकर मिल रहे हो जैसे।
महाराज निकल तो पड़े तो चार कंधों पे,
हमारे हृदय से निकल सकोगे कैसे।
#बिरजुमहराज
#BirjuMaharaj
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