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की तुमसे बिछड़े हुए बीता है एक अरसा,
पर जेहन में आज भी हैं तुम्हारी यादें टंगी हुई।
कभी कभी कई दिन निकल जाते हैं आधे अधूरे से ,
और फिर किसी दिन छा जाती हो पूरे चांद की तरह आसमान में टंगी हुई।
ऐसे में होकर भी कोई तन्हा नहीं होता,
ना जाने कितनी ही कटी हैं ऐसी रातें जगी हुई।
दिल चाहता है की ठहर जाऊं उन्ही लम्हों में पर,
कितनी ही जिम्मेदारियां है जिंदगी के पेड़ों पे लगी हुई।
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