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एक भिखारी था लाता
हर दिन भिक्षा माँग
खा पीकर जो बचता
देता था छींके पर टांग ।
कितने ही दिन हो गए
जब ऐसा करते करते
छिंके पर का घड़ा भी
भर गया भरते भरते ।
एक दिवस वह भिक्षुक
घड़ के नीचे डाले खाट
लगा सोचने घड़ा देख
अब तो होंगे मेरे ठाट ।
इन्हें बेचकर चंद मुर्गियाँ
मैं लेकर आऊंगा
उनसे अंडे और अंडों से
मैं ढेरों मुर्गे पाऊंगा ।
बेच सभी मुर्गे मुर्गी को
ले आऊंगा बकरी
फिर बकरी से बकरों की
जब संख्या होगी तगड़ी ।
उन्हें बेचकर गाएँ फिर
गायों को बेच के घोड़ी
इस प्
हर दिन भिक्षा माँग
खा पीकर जो बचता
देता था छींके पर टांग ।
कितने ही दिन हो गए
जब ऐसा करते करते
छिंके पर का घड़ा भी
भर गया भरते भरते ।
एक दिवस वह भिक्षुक
घड़ के नीचे डाले खाट
लगा सोचने घड़ा देख
अब तो होंगे मेरे ठाट ।
इन्हें बेचकर चंद मुर्गियाँ
मैं लेकर आऊंगा
उनसे अंडे और अंडों से
मैं ढेरों मुर्गे पाऊंगा ।
बेच सभी मुर्गे मुर्गी को
ले आऊंगा बकरी
फिर बकरी से बकरों की
जब संख्या होगी तगड़ी ।
उन्हें बेचकर गाएँ फिर
गायों को बेच के घोड़ी
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