
Share0 Bookmarks 0 Reads0 Likes
प्रेम को परिभाषित
नही किया जा सकता,
इसलिए लिखी जाती
रही है कविताएं,
कविताएं समझने के
लिए नही होती,
कविताओं को जीया जाता है,
जिसे कवि
जी कर लिखता है,
और पढ़ने वाले
पढ़ते हुए जीते है,
केवल पढ़ कर ना प्रेम
समझा जा सकता है
ना कविताएं ।
-वीर
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments