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कहर का चरम है, या यूं कहो ये अंत है
साँच पे आंच का, पहरा नही अनंत है
रात के आखिर पहर, सन्नाटा बेअन्त है
इतना सच कैसे पचे, मुद्दा ये ज्वलंत है
सच हो चला शांत, झूठ है कहकहा रहा
दुःशासन की जय हो, जयघोष है आ रहा
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