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ज़िंदगी बस तुझे मनाने में
दर-ब-दर हो गए ज़माने में
कोई अपना नहीं है अपना सा
जिसको अपना कहें ज़माने में
ख़ुद कहीं दफ़्न हो गया हूं मैं
ज़िस्म के इस नए ठिकाने में
कितने पत्थर उठाने पड़ते हैं
एक नया रास्ता बनाने में
एक पूरी उम्र गुजर जाती है
महज़ दो रोटियां कमाने में
ज़िंदगी दर्द और ग़म के सिवा
और क्या है तेरे खज़ाने में
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