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झूठ बदला है अब यक़ीनों में
साँप बैठा है आस्तीनों में
आदमी आदमी नहीं है अब
बदल के रह गया मशीनों में
रब की मौजूदगी है रूहों में
न ही मंदिर में न मदीनों में
रंग में,रूप में ख़्यालों में
हम ने बाँटा है ख़ुद को दीनों में
ख़ुद हैं किरदार भी,तमाशा भी
ख़ुद खड़े हैं तमाश-बीनों में
हमने जायदादें नहीं बाँटी
र
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