
कुछ दशकों में राजनीति ने,अपना अद्भुत विस्तार किया है।
खादी से लेकर रेशम तक वैभव का व्यापार किया है।
जनहित का महिमामंडन कर जनसेवक सत्ता में आकर,
कुछ बुनियादी सुविधा देकर कहते हैं उपकार किया है।
जो वंचित हैं उनका हक है देश के सारे संसाधन पर,
किंतु वे मोहित हैं झूठे,लोभ,प्रपंची अभिवादन पर।
प्रगति उलझी है राष्ट्र की रहस्यमयी समीकरणों में,
जनता उलझी है बेमतलब मजहब में जाति वर्णों में।
असहमतियों से सत्ता ने शत्रु सा व्यवहार किया है,
कुछ बुनियादी सुविधा देकर कहते हैं उपकार किया है।
सत्ता लिप्सा ने राजनीति को बेहद बदनाम किया है।
संविधान की मर्यादा का हरसंभव अपमान किया है।
मंदिर-मस्जिद से होकर ही सड़कें संसद तक जाती है,
जहां बैठकर स्वयं सियासत हिंदू-मुस्लिम करवाती है।
राजनीति ने मजहब का सम्मोहक श्रृंगार किया है,
कुछ बुनियादी सुविधा देकर कहते हैं उपकार किया है।
सदा बदलती ही रहती है राष्ट्रधर्म की परिभाषाएं,
किंतु फलित नहीं होती हैं आम जनों की अभिलाषाएं।
संविधान संसद प्रतिनिधि है जनमानस के अधिकारों की,
लेकिन संसद स्वयं पीड़ित है असंवैधानिक व्यवहारों की।
देश बँटा है,लोग बँटे हैं, यह कैसा उद्धार किया है।
कुछ बुनियादी सुविधा देकर कहते हैं उपकार किया है।
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