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कुछ दशकों में राजनीति ने,अपना अद्भुत विस्तार किया है।
खादी से लेकर रेशम तक वैभव का व्यापार किया है।
जनहित का महिमामंडन कर जनसेवक सत्ता में आकर,
कुछ बुनियादी सुविधा देकर कहते हैं उपकार किया है।
जो वंचित हैं उनका हक है देश के सारे संसाधन पर,
किंतु वे मोहित हैं झूठे,लोभ,प्रपंची अभिवादन पर।
प्रगति उलझी है राष्ट्र की रहस्यमयी समीकरणों में,
जनता उलझी है बेमतलब मजहब में जाति वर्णों में।
असहमतियों से सत्ता ने शत्रु सा व्यवहार किया है,
कुछ बुनियादी सुविधा देकर कहते हैं उपकार किया है।
सत्ता लिप्सा ने राजनीति को बेहद बदनाम किया है। <
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