
Share0 Bookmarks 99 Reads0 Likes
ज़िंदगी हादसों से लत-पत थी
पर मेरे साथ मेरी हिम्मत थी
जिन आंखों में ख़्वाब होते थे
उन आंखों में आज वहशत थी
ज़िंदगी रूठी आज फिर मुझ से
आज फिर ख़ुदखुशी की नौबत थी
इस तरह कब तलक भटकता मैं
रूह को ज़िस्म की जरूरत थी
अलग बाजार था रईसों का
जहां हर शय की एक क़ीमत थी
कौन दुःख में किसे दिलासा दे
किसको दुनियाँ-जहाँ से फुर्सत थी
एक ऐसा मोहल्ला था जिसमें
बे-ईमानों की खूब इज़्ज़त थी
क्यों खुशी की तलाश करता मैं
जब उदासी ही मेरी क़िस्मत थी
एक से अभी-अभी ही निपटा था
सर पे फिर दूसरी मुसीबत थी
कैसे लाखों का उसका खर्चा था
जबकी आमद तो उसकी औसत थी
अब मेरा बोलना ज़रूरी था
ख़ामोशी वक़्त की ज़रूरत थी
वक्त पर अक्ल आ गई मुझको
वरना सब की खराब नीयत थी
मेरा हासिल मेरी तरक्की में
मेरे गुज़रे दिनों की मेहनत थी
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments