लोग आते हैं लोग जाते हैं
अपनी पहचान ख़ुद बनाते हैं
चांद सूरज की शह पे रोशन है
हम हैं जुगनू ख़ुद जगमगाते हैं
कुछ चले ही नहीं गिरने के डर से बैठ गए
चलने वाले ही मेरे दोस्त लड़खड़ाते हैं
किसी का कुछ भी नहीं है यही हक
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