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दिल के दहर में एक से मौसम नहीं रहते
खुशियां भी रहती हैं हमेशा ग़म नहीं रहते
मेरी तलाश में हैं जो कह दीजिए उन्हें
इस ज़िस्म के मकान में अब हम नहीं रहते
हम खानाबदोश हैं सो ये आदत पुरानी है
एक शहर में एक मकान में पैहम नहीं रहते
सारे जहां की मुश्किलों का क्या करें इलाज
अब अपने मुश्किलात भी तो कम नहीं रहते
झूठी हंसी पहन के जो भी मुस्कुराते हैं
ऐसा नहीं है उनके हिस्से ग़म नहीं रहते
अपने मरीज़ों के लिए इस दुनिया के पास
ज़ख़्म तो रहते हैं पर मरहम नहीं रहते
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