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कितना खुदगर्ज है जमाना ये सब जानते हैं
कितने लोग हैं जो लोगों का कहा मानते हैं
छुपाने से नहीं छुपती है असलियत कभी भी
सब यहां झूठ की शक्लें खूब पहचानते हैं
अब ख़ुशी दोस्त बने ऐसी तमन्ना है मेरी <
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