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ना कारीगर और न पत्थर कर सकता है
सिर्फ मोहब्बत ही घर को घर कर सकता है
तुम पूछो कि और हुनर क्या कर सकता है
हां एक पत्थर को भी ज़ेवर कर सकता है
रब के सिवा है कौन यहां ऐसा कारीगर
जो मिट्टी के बुत को पैकर कर सकता है
दुनिया नहीं बदल सकती एक ज़िद्दी ज़िद को
ये काम दरअसल बस एक ठोकर कर सकता है
हम साथ रहे तो क्या होगा ये पूछने वालों
कतरा-कतरा मिलकर सागर कर सकता है
कलमकार की ताकत क्या है पूछिए हमसे
एक कलम को पूरा लश्कर कर सकता है
वक़्त के हाथ में क़ैद है सबकी क़िस्मत यारों
वक़्त सिकंदर को भी दर-दर कर सकता है
दोस्ती, प्यार, मोहब्बत, सादादिल
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