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मिन्नते कितनी करें
इन बहरी सरकारों से
झूठी आस लगाए हैं
इन बेसुध दरबारो से
अपने हक के लिए लड़ रहे
यह कैसा जन शासन है
मौन पड़े हैं जनसेवक सब
मौन पड़ा सिंहासन है
कहते सब हैं भाई भाई
ऐसी भला नौबत क्यों आयी
कोई महलों में रहता है
कोई रहता सड़कों पर
भारत कहता सब समान हैं
यह कैसा निर्वा
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