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मिन्नते कितनी करें
इन बहरी सरकारों से
झूठी आस लगाए हैं
इन बेसुध दरबारो से
अपने हक के लिए लड़ रहे
यह कैसा जन शासन है
मौन पड़े हैं जनसेवक सब
मौन पड़ा सिंहासन है
कहते सब हैं भाई भाई
ऐसी भला नौबत क्यों आयी
कोई महलों में रहता है
कोई रहता सड़कों पर
भारत कहता सब समान हैं
यह कैसा निर्वासन है
सब निजता में बंधे हुए हैं
लक्ष्य भी सबके सधे हुए हैं
नियमों की किसको पड़ी है
खुद की चिंता बहुत बड़ी है
शून्य हो चुका है हर जगह
ये कैसा अनुशासन है
केवल सुनने में अच्छा है
झूठा कुछ कुछ कुछ सच्चा है
नारे केवल भरे पड़े हैं
अपनी जिद पर सभी अड़े हैं
वादे हैं केवल आशाएं
यह कैसा संभाषण है
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