
मैं क्या था और क्या से क्या हुआ हूँ
मंज़िल था और अब रस्ता हुआ हूँ
मैं अपने आप के जैसा हुआ हूँ
अपनी बुनियाद में रक्खा हुआ हूँ
अभी कुछ खामियाँ बाक़ी हैं मुझ में
अभी भी चाक पर रक्खा हुआ हूँ
ये अब मेरे डर की इन्तहा है
मैं अपने आप से लिपटा हुआ हूँ
चाहे जो भी हूँ जैसा भी हूँ मैं
अपनी तक़दीर का लिख्खा हुआ हूँ
वो मेरा होना,छुपाना चाहता है
मैं जिस की आंख में उतरा हुआ हूँ
दवाओं ने बढ़ा दी और बीमारी
मैं उसके छूने से अच्छा हुआ हूँ
मेरी मंज़िल मुझे दिखला दे कोई
मुसाफ़िर रास्ता भटका हुआ हूँ
मैं जिस की आंख का तारा हूँ सचमुच
उसकी पलकों पर रक्खा हुआ हूँ
मुखालिफ़ है ये सारी दुनिया मेरी
कि सच के साथ मैं क्यों खड़ा हुआ हूँ
मेरे होने में कुछ मेरा नहीं है
किसी का ख़्वाब था चेहरा हुआ हूँ
मुझे ज़ख़्मों की आदत है शुरू से
क्योंकि दर्द का पाला हुआ हूँ
हरा सकता नहीं अब मुझको कोई
मैं अपनी जीत से हारा हुआ हूँ
मैं कोई ख़्वाब था आधा अधूरा
मुद्दत बाद अब पूरा हुआ हूँ
मिलने ही नहीं आया वो मुझसे
मैं जिसकी आस में बैठा हुआ हूँ
वही मतलब मुझे समझाए मेरा
मैं जिस के लफ्ज़ में बरता हुआ हूँ
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