
मतलब किसे है आजकल दुनिया-जहान से
फुर्सत नहीं किसी को अपने गुमान से
मुश्किलों से लड़ने की आदत सी हो गई
गुज़ारे गए हैं इतनी दफ़ा इम्तिहान से
चाहिए ग़र ज़िंदगी तो झूठ बोलिए
सच बोलने की शर्त है जाएंगे जान से
ज़रा सी बे-ध्यानी करेगी ज़िंदगी को मौत
ऊंचाइ के सफ़र में चलिए धियान से
ये तो सियासी खेल है हैरान क्यूँ हैं आप
पलट गया है ग़र कोई अपने बयान से
उनकी पहुँच तो मुश्किल है आसमान तक
डर लगता है जिन को भी ऊँची उड़ान से
दौलत से तो हर चीज़ खरीदी जा नहीं सकती
इज्ज़त खरीद लाए कोई किस दुकान से
ये कैसे चारागर हैं जो कि दर्द का इलाज
अंदाज़न ही करते हैं ज़ख़्मों के निशान से
हम को घर बनाने की ये सजा मिली
हम ख़ुद ही निकाले गए अपने मकान से
जल चुके हैं इसलिए भी राख हो गए
हम को समेट ले अब कोई राख-दान से
ज़िंदगी भागे है जबकि तेज़ बहुत तेज़
फिर आप क्यों बैठे हुए हैं इत्मीनान से
कहीं भी सर छुपाने की जगह नहीं मिली
जब से हुए हैं दूर अपने आशियान से
इश्क़ तो बस दिल का दिल से कलाम है
लेना-देना कुछ नहीं इसका है ज्ञान से
रोशनी बिखेरना है काम “मिश्र" का
कोई ताल्लुक है कलम के खानदान से
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