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खुशियों की सुबह ग़म की शाम ज़िंदगी
मौत जैसे सज़ा है इनाम ज़िंदगी
हर नए दिन यहां एक तमाशा नया
उस मदारी के हाथों गुलाम ज़िंदगी
शानो-शौकत के हिस्से में तन्हाईयां
मुफ़लिसी में है करती क़याम ज़िंदगी
महफ़िलों में भी तनहा अकेले रह
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