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दास्तान-ए-ज़िन्दगी

Nivedan KumarNivedan Kumar March 4, 2022
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खुशियों की सुबह ग़म की शाम ज़िंदगी

मौत जैसे सज़ा है इनाम ज़िंदगी


हर नए दिन यहां एक तमाशा नया

उस मदारी के हाथों गुलाम ज़िंदगी


शानो-शौकत के हिस्से में तन्हाईयां

मुफ़लिसी में है करती क़याम ज़िंदगी


महफ़िलों में भी तनहा अकेले रह

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