
दर्द का मौसम है फिलवक्त फ़िज़ाओं में
मौजूद है मोहब्बत अब सिर्फ दुआओं में
कोई भी पलट जाए आवाज़ तेरी सुनकर
इतनी सी कशिश रखना तुम अपनी सदाओं में
कांटे हैं दर्द बे-हद इस बेरहम दुनिया में
आ लौट चलें फिर से फूलों की पनाहों में
वादे कभी न करना झूठे मोहब्बत में
चाहत न कोई रखना बेशर्त वफ़ाओं में
क्या खूब महकती है मौसम की पहली बारिश
मिट्टी की सोंधी खुशबू जब मिलती है हवाओं में
तय कीमतें हैं सच की हर काम के मुताबिक
क्या हैसियत है सच की दुनिया की निगाहों में
झूठी दलीलें देकर मुज़रिम रिहा हुए हैं
उलझा हुआ है सच ख़ुद कानूनी दफाओं में
यारों जब से दुनिया आधुनिक हुई है
फूल नहीं मिलते मोहब्बत के किताबों में
एक पल की नहीं है फुर्सत ख़ुद के वास्ते भी
सब उलझे हुए हैं इतने अनसुलझे सवालों में
यहां कौन करता है अब हीर सी मोहब्बत
ऐसे कुछ एक किस्से बाकी हैं मिसालों में
मरता नहीं यहां पर बीमारियों से कोई
यारों कैद होती ग़र उम्र दवाओं में
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