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मुझ को गिरने दे चोट खाने दे
ख़ुद को ऐसे भी आज़माने दे
उस के जाने का मत मलाल कर
उसको जाना था,छोड़ जाने दे
तुमको आना था तुम नहीं आए
अब नहीं आने के बहाने दे
नसीहत रख अपने पास अपनी
भूख को दे सके तो दाने दे
मुझसे होती नहीं तरफदारी
झूठ को आईना दिखाने दे
ये जरूरी नहीं मुकम्मल हों
पर नए ख़्वाब तो सजाने दे
तमाशा होगा ज़रा सब्र रख
पहले किरदार तो बनाने दे
मिश्र"सैलाब में उतरना था
ठहर जा, कश्तियाँ बनाने दे
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