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न्याय अंधेरे में है,
और सत्य कटघरे में।
गवाह विश्वास को
ढूंढता फिर रहा है।
उस भीड़ में,
जहां कोई नहीं है।
न न्याय,न सत्य,न गवाह
और न विश्वास।
सब कुछ एक खेल की तरह चल रहा है,
जिसमें कानून अपनी आंखों पर पट्टी बांधे
उसे पकड़ने की कोशिश कर रहा है,
जो उसे दिखता ही नहीं।
और जिन्हें दिख रहा है,
वो केवल अफसोस कर रहे हैं।
कुछ नहीं कर सकते,
क्योंकि वे केवल दर्शक हैं।
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