
"हास्य व्यंग्य || ऑफिस में सांप || नितिन कुमार हरित"
सुनो सुनाऊं एक कहानी, रूह जायेगी कांप,
एक फैक्ट्री के, एक ऑफिस में, आ गया एक सांप।
भागो, मारो, पकड़ो सब के सब चिल्लाए,
सांप ने सोचा बुरा फंसे अब राम बचाए।
जितने भी थे सब को थी, ये चिंता भारी,
पर सांप भगाने की ना की, कोई तैयारी।
काम करो ना करो, मगर हां जिक्र करो,
कोई पूछे ना पूछे, बस फिक्र करो।
बात जान पर देखी तो मैनेजर बोला,
"सुनो जरा इधर आओ, ओ मिस्टर भोला,"
अपना सुन कर नाम छायी, घोर उदासी,
पर क्या करता भोला? वो था चपरासी।
मैनेजर बोले, "डू यू नो भोला, वाई योर नेम इज भोला"
"मां ने रखा है, बहुत सीधा भी हूं साहेब", भोला बोला,
"ओ नो नो, तुम भोले हो, महादेव हो, तुम त्रिपुरारी,
चलो चलो अब करो सांप पकड़ने की तैयारी।
मरता क्या ना करता, बात समझ ना पाया,
डरता-डरता भोला एक लाठी ले आया।
ये सब देखा तो दो ऑफिसर आपस में बोले,
"खुद तो कुछ नहीं करता, कहता है भोले भोले।
सांप भगाएगा भोला, और नंबर ये पायेगा,
देखना, इस बार भी तेरा प्रमोशन जायेगा"
"अरे, ऐसे कैसे जायेगा", कह के दी इस्माइल,
तुरंत निकाला जेब से स्मार्ट मोबाईल।
"ऑफिस में हैं सांप, बड़ा लंबा, जहरीला,
सीट के नीचे छिप कर बैठा, पीला पीला।
पर इस पर हम मिलकर शिकंजा जकड़ रहे हैं,
चिंता कुछ ना करना हम इसको पकड़ रहे हैं"
ये सब लिख कर, वाट्सअप ग्रुप पे मैसेज डाला,
टूं टूं बज उठा फोन, सभी ने फोन निकाला।
मैनेजर ने टाइप किया, "गुड, शिकंजा जकड़ो जकड़ो,
जो चाहे वो करो, सांप को जल्दी पकड़ो"
इतना लिखकर मैनेजर, फिर फिरसे बोला,
"तुम क्या कर रहे हो? ओ मिस्टर भोला"
"साहेब! बाहर से ये लंबी लाठी लाया हूं ,
कोशिश की है, पर सांप, अभी ना पकड़ पाया हूं"
"व्हाट भोला? योर नेम इज भोला, डू यू नो वाय"
"जी साहेब, मैं हूं भोला , मैं महादेव, मैं शिवाय"
"ओ नो नो, तुम्हारी मां ने रखा है, तुम बड़े सीधे हो भाई,
ये लाठी ऑफिसर को दो, बात समझ में आई ?"
भोला मन में सोचे, राम ने जान बचाई
इतने में ये बात, शॉप फ्लोर तक आई।
"सुनो सुनो, पता चली है खबर भयंकर,
अपनी फै
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