
मेरी वेदना का प्रथम स्वर तुम्हीं हो
मेरी प्रेम कविता के आखर तुम्हीं हो
तुम्हीं मौन हो, शब्द हो, गान हो तुम
मेरी चेतना हो, मेरे प्राण हो तुम
अंधेरों में जलते दिए से मिले तुम
मरू में महकते सुमन से खिले तुम
हो सावन मेरा तुम, तुम्हीं गंध सौंधी
मैं जीता भी कैसे, यदि तुम ना होती
तुम्हीं पर टिके हैं मेरे स्वप्न सारे
मेरे मन का भीतर तुम्हीं को पुकारे
मनोकामना पूर्ण निर्झर तुम्हीं हो
मेरी वेदना का प्रथम स्वर तुम्हीं हो
मेरी प्रेम कविता के आखर तुम्हीं हो
सुनो मेरे जीवन का जब छोर आए
मेरी आत्मा तब तुम्हें पूर्ण पाए
यही लेखनी तब मेरे हाथ में हो
मां शारदे की कृपा साथ में हो
कंपित करों से गढूं प्रेम अंतिम
कहूं प्रेम अंतिम, जियूं प्रेम अंतिम
हो अंतिम प्रणय, सांस अंतिम चले तब
विलय हो सकल चेतना ये ढले तब
तुम्हीं राह अंतिम, उधर घर तुम्हीं हो
मेरी वेदना का प्रथम स्वर तुम्हीं हो
मेरी प्रेम कविता के आखर तुम्हीं हो
~ नितिन कुमार हरित #NitinKrHarit
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