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खुदगर्जियाँ हैं बेपनाह, शिक़वे, ग़ुबार हैं,
तन्हा भले हूं आज पर, किस्से हज़ार हैं।
लब सिले हैं, आह भी निकली नहीं कभी,
खंजर कई दिल के मेरे, पर आर पार हैं।
- नितिन कुमार हरित
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खुदगर्जियाँ हैं बेपनाह, शिक़वे, ग़ुबार हैं,
तन्हा भले हूं आज पर, किस्से हज़ार हैं।
लब सिले हैं, आह भी निकली नहीं कभी,
खंजर कई दिल के मेरे, पर आर पार हैं।
- नितिन कुमार हरित
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