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'लौट नहीं पाता है वो'
काम की तलाश में,
घर से निकलकर,
जब दूर चला जाता है वो
लौट नहीं पाता है वो
झूठ के पुलिंदों पर
जब अपने ही कल का
आशियाँ बनाता है वो
लौट नहीं पाता है वो
कुछ ख्वाहिशों के चक्कर में
अपनी चादर से कहीं ज्यादा
जब पैर फैलाता है वो
लौट नहीं पाता है वो
तन्हाई में, डरकर
अपने ही अक्स से
जब आँख चुराता है वो
लौट नहीं पाता है वो
अपना घर बचाने को
किसी और घर में
जब आग लगाता है वो
लौट नहीं पाता है वो
जब आदमी होकर भी
आदमी से ही
चिढ़ता, कतराता है वो
लौट नहीं पाता है वो
- नितिन कुमार हरित #nitinkrharit
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