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हरित वाणी : ११ फरवरी २०२३
एक जीवन, एक शर्म जल, एक आंसू की धार,
कलजुग में सूखे हरित, खारा बढ़ा अपार।
कलजुग में सब सूख रहे हैं, जल के उदगम, नदियां, नाले,
आंख में पानी सूख रहा है, शर्म बची ना, राम बचा ले,
सच्चे आंसू सूख रहे हैं, झूठे आंसू आंख ने पाले,
कलजुग के इस जीवन चक्र में, जीवन जीवन को खा डाले।
~ नितिन कुमार हरित
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