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हे कृष्ण सुनो, नंदलाल सुनो
गोविंद सुनो, गोपाल सुनो
हे मुरलीधर घनश्याम सुनो
मेरी व्यथा प्रभो, अविराम सुनो
हे प्रेम सुनो हे योग सुनो
हे विरह सुनो हे भोग सुनो
हे काल सुनो, महाकाल सुनो
हे जनक सुनो, महिपाल सुनो
तुम हो विराट, तुम अविनाशी
जल थल नभ घट घट के वासी
तुम गुणातीत तुम हो अनंत
ना आदि मध्य ना कोई अंत
हे मन मोहन हे मोर पखा
पितु मात सहायक स्वामी सखा
मैं द्वार तुम्हारे आया हूं
कोई भेंट मगर ना लाया हूं
तुम्हें अखिल विश्व के अधिकार
फिर भेंट का होता क्या आधार
और सुनो नहीं गुण लेष मात्र
हर तरह प्रभो मैं हूं अपात्र
पर तुम शर
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