
हे कृष्ण सुनो, नंदलाल सुनो
गोविंद सुनो, गोपाल सुनो
हे मुरलीधर घनश्याम सुनो
मेरी व्यथा प्रभो, अविराम सुनो
हे प्रेम सुनो हे योग सुनो
हे विरह सुनो हे भोग सुनो
हे काल सुनो, महाकाल सुनो
हे जनक सुनो, महिपाल सुनो
तुम हो विराट, तुम अविनाशी
जल थल नभ घट घट के वासी
तुम गुणातीत तुम हो अनंत
ना आदि मध्य ना कोई अंत
हे मन मोहन हे मोर पखा
पितु मात सहायक स्वामी सखा
मैं द्वार तुम्हारे आया हूं
कोई भेंट मगर ना लाया हूं
तुम्हें अखिल विश्व के अधिकार
फिर भेंट का होता क्या आधार
और सुनो नहीं गुण लेष मात्र
हर तरह प्रभो मैं हूं अपात्र
पर तुम शरणागत वत्सल हो
वात्सल्य रुप करुणांचल हो
यही सोच हे केशव पड़ा यहां
कर युगल जोड़कर खड़ा यहां
यदि समझो मुझको अधिकारी
तो नाव मेरी उस पार करो
यदि ना समझो तो दिन समझ
हे दीनबंधु उपकार करो
अब शरण तुम्हारी आया हूं
किसी और द्वार ना जाऊंगा
जो तुमने ठुकराया मुझको
मैं अर्जी कहां लगाऊंगा
इसलिए सुनो नाथों के नाथ
मेरी पहली अंतिम आस तुम्हीं
मेरा नेह तुम्हीं मेरा प्रेम तुम्हीं
संकल्प तुम्हीं विश्वास तुम्हीं
कठपुतली सा मेरा जीवन
हे नाथ मुझे आधार करो
अच्छा हूं या फिर बुरा सुनो
जैसा भी हूं स्वीकार करो।
~ नितिन कुमार हरित
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