
मैं चुप रहूंगा, कुछ ना बताऊंगा मां मेरी,
छुपाऊंगा मां मेरी, के हाथ मेरे कुछ भी नहीं।
बचपन से हर हालात में, तूने ही संभाला,
जल जल के हर एक रात किया, घर में उजाला,
थाली में रख दिया मेरी, अपना भी निवाला,
कैसे कहूं क्या क्या किया, कैसे मुझे पाला,
दिल में रखूंगा, कुछ ना भुलाऊंगा मां मेरी,
छुपाऊंगा मां मेरी, के हाथ मेरे कुछ भी नहीं।
तेरी ही मेहनतों से मेरे दिन बदल गये,
आगे थे कई लोग जो पीछे निकल गये,
आंचल तले सपने मेरे सारे संभल गये,
कितने ही तेरे खाब थे इन सब में जल गये,
मैं ख़ाब तेरे, कैसे जुटाऊंगा मां मेरी,
छुपाऊंगा मां मेरी, के हाथ मेरे कुछ भी नहीं।
कल हाथ मुलायम थे, अब दिखती हैं झुर्रियां,
चलती है, आह करती हैं, तेरी ये पसलियां,
मैंने सुनी हैं रात तेरी सारी सिसकियां,
गिरती रहीं दिल पे मेरे हर बार बिजलियां,
पर जानता हूं रोक ना पाऊंगा मां मेरी,
छुपाऊंगा मां मेरी, के हाथ मेरे कुछ भी नहीं।
ये उम्र की दहलीज मेरा, सब डुबो रही,
डरने लगा हूं देख तू बूढ़ी जो हो रही,
दस्तूर है दुनिया का देख, सांस रो रही,
आसूं में मेरी आत्मा मुझको भिगो रही,
मजबूत हूं, आंसू ना दिखाऊंगा मां मेरी,
छुपाऊंगा मां मेरी, के हाथ मेरे कुछ भी नहीं।
मैं चुप रहूंगा, कुछ ना बताऊंगा मां मेरी,
छुपाऊंगा मां मेरी, के हाथ मेरे कुछ भी नहीं।।
- नितिन कुमार हरित #nitinkrharit
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