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फीता लेकर सोचता, कैसे नापूं नाप,
चोले चोले में छिपे, तरह तरह के सांप।
तरह तरह के सांप, कई मुंह के, जहरीले,
सच्ची बोलूं बात, इन्होंने कुनबे लीले।
कैसे महके भवन, अगर हो आँगन रीता,
सुन, पहले सब भांप, छोड़कर अपना फीता।
~ नितिन कुमार हरित #NitinKrHarit
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