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आत्म ये अर्जुन, ओढ़ के चोला, भ्रम की देह का, जग में आए,
तन की रचना, मन की श्रेणी, प्रारब्धों के फल से पाए,
देह क्षणिक है, पल पल बदले, बाल्य, युवा, जर्जरता लाय,
इसको केवल सत्य बताकर, चंचल मन सबको भरमाए।
रोग इसी के, शोक इसी का, जग में इसी के रिश्ते नाते,
जग में जग का छूटे सारा, नाते अर्जुन साथ ना जाते,
आत्म अमर है, अविनाशी है, ज्ञानी जन ना शोक मनाते,
जल से ना भीगे, सूखे जले ना, आत्म के पुष्प ये कब मुरझाते?
अस्त्र ना कोई श
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