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फूलों से कुछ खाब चोंच में अपनी भर कर लाती थी,
एक चिड़िया थी, रोज़ सवेरे मेरे घर में आती थी।
सूरज से पहले आकार ही मुझको रोज़ जगाती थी,
एक चिड़िया थी रोज़ सवेरे मेरे घर में आती थी।
बहुत पुरानी बात हुई ये, जब मैं छोटा बच्चा था,
खुला खुला घरबार था मेरा, और हां पूरा कच्चा था,
पर रिश्ता पक्का था उसका, सच में रोज़ निभाती थी,
एक चिड़िया थी रोज़ सवेरे मेरे घर में आती थी।
मैं मुंडेर पे दाना पानी उसको देकर आता था,
एक दाना भी वो खा ले तो कितना खुश हो जाता था,
वो फिर चीं चीं करके मुझको सारा हाल बताती थी,
एक चिड़िया थी रोज सवेरे मेरे घर में आती थी।
धीरे धीरे मैंने देखा जैसे हम सब बड
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