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दौड़ता भागता दर-ब-दर आदमी,
एक सफर ही रहा उम्र भर आदमी।
कितना नादान है नासमझ आदमी,
छोड़ता घर की खातिर ही घर आदमी।
राह की मुश्किलों से लड़ा आदमी,
आदमी का रह
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दौड़ता भागता दर-ब-दर आदमी,
एक सफर ही रहा उम्र भर आदमी।
कितना नादान है नासमझ आदमी,
छोड़ता घर की खातिर ही घर आदमी।
राह की मुश्किलों से लड़ा आदमी,
आदमी का रह
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