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आओ, एक दीपक जलाएं,
दीप वो, जिसमें कहीं ना जातियों का भेद हो,
दीप वो जिसमें, ना ही विश्वासघाती छेद हो,
दीप जो ऊंचे मका में ज्योति खो जाता ना हो,
बिन छतों के झोपड़ों को जो जला आता ना हो,
दीप जो हंसता रहे सब गम छुपा अपने तले,
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