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कब आओगे, तुम कब आओगे।
अब तो दिन गुज़रा, शाम ढली, रात भई जी,
कब से तेरी राह तकें
कब आओगे, तुम कब आओगे।
वादा किया था कि आज हम मिलेंगे,
जो भी है दिल में एक दूजे से कहेंगे।
निर्मल बहती जैसे गंगा कि धारा,
प्रेम रूपी गंगा में हम भी बहेंगे।
लेकिन,
वादा तोड़ दिया, ये क्या बात भई जी,
कब से तेरी राह तकें
कब आओगे, तुम कब आओगे।
अब तो दिन गुज़रा, शाम ढली, रात भई जी,
कब से तेरी राह तकें
कब आओगे, तुम कब आओगे।
कहते थे मै हीं बनूंगा तेरा सजना,
आयेगी डोली तेरी मेरे हीं अंगना।
सजती संवरती हूं रोज यही सोच के,
आओगे तुम फिर पूरा होगा सपना।
फिर क्या हुआ...
दिल टूट गया, दिल पे घात भई जी,
कब से तेरी राह तकें कब आओगे,
तुम कब आओगे।
अब तो दिन गुज़रा, शाम ढली, रात भई जी,
कब से तेरी राह तकें
कब आओगे, तुम कब आओगे।
नितेश शर्मा
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