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बहुत मिला पीने को दर्दोंगम के आंसू,
अब एक छलकता ज़ाम चाहिए।
ग्लास भर से उतरेगा न चेहरा
उस मगरुर का मेरी आंखों से,
पीने को मयखाना तमाम चाहिए।
चाहिए थी जो वो जिंदगी न मिली,
मिली है जो, जिंदगी नहीं सजा है।
पूछा खुदा से क्यों दी ऐसी जिंदगी,
ख़ामोश है खुदा, न जाने क्या वजह है।
परेशान हूं मै रिवायते जिंदगी से,
अब हमेशा कि खातिर आराम चाहिए।
काफी नहीं है इतनी जहर, साकी,
मरने के लिए कोई और इंतजाम चाहिए।
बहुत मिला पीने को दर्दोंगम के आंसू,
अब एक छलकता जाम चाहिए।
नितेश शर्मा
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