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वक़्त तो लगता है,
कभी कुछ कहने में,
कभी कुछ समझने में,
जज़्बात इतने आसान नहीं होते ।
टेक्नोलॉजी के जमाने में,
सबकुछ कितना आसान है,
फिर भी वक़्त लगा देता हूं मै,
छोटी सी इक बात कहने में।
सोचता हूं , लिखता हूं, मिटाता हूं,
हर एक नज़्म को हजारों बार दोहराता हूं,
जल्दबाजी में कभी कुछ मिसरे छूट जाते हैं,
रिश्तों को बनने में वक़्त लग जाता है।
जब कभी फुरसत लगे तो आना,
एक शाम चाय पर बैठेंगे,
अधूरी - सी जो बातें रह गई हैं,
उन्हें यूं ही पूरी कर लेंगे ।
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