मर्द लोग's image
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पीढ़ियों का बोझ उठाकर चलते रहे,

कोमल कंधे यूं ही नही दमदार हो गये।


सहते रहे धूप ताप बारिशों को,

जमाने से खेलकर कलाकार हो गये।


कहना सीख ना सके तो लिखने लगे ,

अपनी ख़ामोशियों के ये फनकार हो गये।


कलमकारी के ऐसे ये शिकार हो गये,

कभी निराला तो कभी गुलजार हो गये ।


दिन भर झुलसने से ये भठ्ठी बन गये,

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