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आज बड़े दिनों बाद ,
बादलों को बरसते हुए देखा।
धरती की गोद में आने को,
नन्ही बूंदों को लड़ते हुए देखा।
मिट्टी की सौंधी - सौंधी खुशबु,
पत्तियौं का अद्भुत था वो साज।
टिन पर पड़ती हुई ,
बूंदों की टप -टप की आवाज।
हवाओं की ठंडी सी वो छुअन,
आशिकाना था वो मिजाज।
खिड़की से टकराकर ,
कुछ बूंदे गिरी चेहरे पर।
यादों की पोटली से निकल,
कुछ ख्वाब सज गए पलकों पर।
एहसास था कुछ अधूरेपन का,
ख्वाबों को हकीकत से भींगते हुए देखा।
आज बड़े दिनों बाद ,
बादलों को बरसते हुए देखा ।
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